।।।।।।।।।।।।।विद्यापति स्तुति।।।।।।।।।।।। ####### अर्द्ध नारीश्वर शिव की स्वरूप की वंदना########## £हे देवाधिदेव शंकर । हे त्रिपुरारि। हे अर्द्ध नारीशावर शिव आपका आधा वेश पुरुष और आधा वेश नारी का है।आपका आधा शरीर धवल वर्ण का है और आधा भाग गौर वर्ण का है ।आधे भाग का स्वाभाविक पुरुष कुच सुशोभित हैं और आधे भाग में कटोरे के समान उभार वाला वक्ष स्थल हैं।####। हे अर्द्ध नारिश्वर ।आपके आधे भाग में मुंडमाला शोभा दे रही है और आधे भाग में गज मुक्ताओ की माला विराज रही है।आधे शरीर में चंदन का लेप है और आधे भाग में भस्म लगी हुए है।आधे भाग में चेतन मति अर्थात् स्त्री-सुलभ सहज चंचलता शोभा दे रही है और दूसरे भाग में भोलापन अर्थात् सहज उदासीनता है। ####आधे भाग में आप रेशमी वस्त्र धारण किए हुए हैं और आधे भाग में मूंज की मेखला शोभा देती है।आपके शरीर का आधा भाग योगी के समान हेयर आधा भाग भोग - विलास का सूचक है । आधा भाग रेशमी वस्त्र सुसज्जित हेयर आधा भाग नग्न है,जो आपकी वैराग्य भावना को सूचित करता है।#####। ££ हे अर्द्ध नारिश्वर।आपके आधे मस्तक में चंद्रमा विराजमान है और आधे में सिन्दूर शोभायमान है। आपका आधा भाग रूप-रहित है और आधा भाग अपने रूप से संसार को लुभाता है। कवि विद्यापति कहते हैं कि विधाता ही जानता है कि उसने किस प्रकार कौशल से एक ही प्राण में दो भागों का निर्माण किया है।###। ££ विशेष= भगवान शंकर को योगी और भोगी की पौराणिक कल्पना यहां साकार हुई है। योग और भोग का समन्वय ही शिवत्व है ।।।।। #####हर हर महादेव#########

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सात रंगों की परी......... @@@@सात रंगों की परी हूं मैं ।@@@@ @@@@थोड़ी चंचल थोड़ी नादान।।@@@@ @@@@आंखे मेरी हिरनी जैसी।@@@@ @@@@ दो पंखे मेरे सपने के ।।@@@@ @@@@इधर से जाती उधर से आती।@@@ @@@सात रंगों के सपने मेरे।।@@@ @@@ चांद - सितारे मेरी दुनियां।@@@ @@@ पंख पसार खेलूं इनसे।।@@@ @@@जहां भी जाती सात रंगों में।@@@ @@@@सात रंगों की परी हुं मैं।।@@@ @@@बांसुरी की सुर हूं मैं ।@@@@ @@@@ प्रकृति की धुन हूं मैं।।@@@@ @@@@नदी की जैसी चंचल हूं मैं।@@@ @@@@सात रंगों की परी हूं मैं।।@@@@ @@@@पंख से अपनी बाते करती।@@@@ @@@अपने सपने खुद बनाती ।।@@@ @@@@ चांद सितारे साथी मेरे।।@@@@ @@@@प्रकृति की परी हूं मैं।@@@@ @@@@ सात रंगो को परी हूं मैं।।@@@@